बिहार में एक ऐसा मंदिर जहां एक ही छत के नीचे होती है शिवलिंग और मजार की पूजा।

बिहार में एक ऐसा मंदिर जहां एक ही छत के नीचे होती है शिवलिंग और मजार की पूजा।

बिहार के समस्तीपुर जिले से महज 15 किलोमीटर दूर मोरवा में स्थित बाबा खुदनेश्वर धाम मंदिर जहां एक ही छत के नीचे भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग एवं उनकी मुसलमान महिला भक्त खुदनी बीवी की मजार की पूजा एक साथ होती है। संपूर्ण भारत में सांप्रदायिक सौहार्द का यह अनुपम स्थल अपने आप में अनोखा है। इस चर्चित मंदिर के संबंध में बड़ी ही रोचक कथा प्रचलित है। 12वीं शताब्दी में यहां ग्रामीणों की आबादी कम और वन प्रांतर अधिक था। यहां अली हसन और खैर निशा नाम के एक मुसलमान दंपति रहते थे। इनकी एक मात्र पुत्री जिनका नाम खुदनी था। जीविकोपार्जन के लिए कोई दूसरा सहारा नहीं होने के कारण यह गाय चराने का काम करते थे। छोटी लड़की खुदनी जब थोड़ी बड़ी हुई, तब माता-पिता ने गाय चराने के लिए खुदनी को ही वन में भेजने लगे। अचानक उनकी एक गाय ने दूध देना बंद कर दिया। जिससे उसके माता पिता द्वारा उससे पूछा जाने लगा की गाय आखिर दूध क्यों नहीं देती है, जिसका खुदनी द्वारा प्रतिकूल उत्तर नहीं मिलने पर उसके माता पिता ने अपनी पुत्री को मरना-पीटना शुरू कर दिया। माता-पिता से लगातार मार खाने के बाद खुदनी ने उस गाय का पीछा करना शुरू किया। एक दिन वह देखती है कि उसकी वह गाय एक झाड़ी पर अपने स्तन का सारा दूध गिरा रही है। वह अब गाय को नियमित रूप से यही काम करते रोज देखा करती थी । जिसके कारण घर पर उसका दूध देना बंद हो गया था। खुदनि एक दिन सोची की कल सुबह वह यह सारा राज अपने माता पिता को बताएगी तो उसी रात शिव जी उसके स्वप्न में दर्शन देकर कहे की अगर वह इस राज को किसी के सामने बताएगी तो उसकी मृत्यु हो जायेगी। तो कुछ दिन तक खुदनी इस बात को छुपाए रखी लेकिन रोजाना मार खाने के कारण उसने एक दिन अपने माता पिता को सच बता ही दी। बालिका खुदनी ने गाय द्वारा एक झाड़ी में दूध गिरा दिए जाने के इस रहस्य को अपने माता पिता को सुनाई। इस बात को सुनकर माता-पिता सन्न रह गए लेकिन उसी रात खुदनी को कोलरा (कोई विशेष प्रकार की बीमारी) हो गई और वह विकराल रुप पकड़ लिया जब उसे लगा की वह अब ज्यादा देर तक जिंदा नहीं रह पाएगी तो उसने अपने माता पिता से कही की जब मैं मर जाऊं तो मेरी कब्र उसी जगह गाड़ना जहां अपनी गाय अपना सारा दूध गिरा दिया करती है। और उसी रात उसकी मृत्यु हो गई। जब उसके लाश को दफनाने के लिए कब्र कुदाल से खोदना शुरू किया। तो कुदाल का प्रहार लगते ही वहां रक्त का फव्वारा निकलने लगा। यह देखकर लोग अचंभित हो गए। और उसको साफ करने के बाद वहां एक काला पत्थर का शिवलिंग निकला, जिससे रक्त का फव्वारा निकल रहा था। भगवान शिव का शिवलिंग होने की जानकारी मिलते ही ग्रामीणों द्वारा पूरे भक्ति भाव के साथ पूजा अर्चना शुरू कर दी गई। भगवान शिव से गलती मानने के बाद बड़ी मुश्किल से शिवलिंग से निकलने वाला रक्त बंद हुआ। उसकी अंतिम इच्छा के अनुसार उसे भगवान शिव के शिवलिंग के निकट ही दफनाया गया। ग्रामीणों के सहयोग से तत्काल वहां एक कच्चा मंदिर बना दिया गया और भगवान शिव कि पूजा शुरु कर दी गई। उसी स्थान पर उसकी पार्क मजार का निर्माण किया गया। तभी से भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के साथ ही उनकी मुसलमान महिला भक्त खुदनी बीवी की मजार की भी पूजा होती आ रही है। आपको बता दूं कि भगवान शिव की परम भक्त महिला खुदनी के नाम पर ही इस मंदिर का नाम करण खुदनेश्वर के रूप में किया गया। लाखों लोगों का कहना है कि इस खुदनेश्वर मंदिर के अंदर भगवान शिव के शिवलिंग और खुदनी के मजार की पूजा करने से हर मनोकामना की पूर्ति होती है। इसीलिए यहां श्रद्धालु भगवान शिव की पूजा के साथ खुदनी बीबी के मजार की भी पूजा किया करते हैं। बिहार सहित संपूर्ण देश विदेश के लोग यहां आकर अपनी मनोकामना की पूर्ति होने पर भगवान शिव को चढ़ावा चढ़ाते हैं। सावन महीने में पूरा महीना यहां गुलजार बना रहता है। विशेषकर महाशिवरात्रि के अवसर पर पांच दिवसीय मेले का भी भव्य आयोजन किया जाता है। बाबा खुदनेश्वर धाम में आकर लाखों श्रद्धालुओं अपनी मनोकामना की पूर्ति कर चुके हैं। वर्ष 2006 में ग्रामीणों के सहयोग से अत्यंत भव्य मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया गया था जो अब बनकर तैयार हो चुका है। यहां की महिमा से प्रभावित होकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने 2012 में यहां का दौरा कर, इसकी ऐतिहासिकता एवं सांप्रदायिक सौहार्द स्थली के रूप में संपूर्ण देश का दुर्लभ स्थल मानते हुए इसे पर्यटक स्थल के रूप में इसके सौंदर्यीकरण की घोषणा की। बिहार सरकार द्वारा चार करोड़ की राशि का आवंटन किया गया है, जिससे इस स्थान का पर्यटक स्थल के रूप में नव निर्माण शुरू कर दिया गया है। स्थानीय सांसदों के द्वारा यहां विवाह भवन सामुदायिक भवन इत्यादि का भी निर्माण कराया गया है। इस सांप्रदायिक सौहार्द की अनुपम स्थली का प्रभाव यह है कि, जहां देश में बार-बार सांप्रदायिक दंगे होते रहे हैं, लेकिन यहां पर आज तक कोई भी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ है, तथा हिंदू और मुसलमान दोनों धर्म के लोग प्रेम से यहां निवास कर रहे हैं। अब तो यह मंदिर करीब 800 वर्ष पुराना हो चुका है।