पटना : हाई रिस्क प्रेगनेंसी में कमी से सुरक्षित मातृत्व की बुनियाद होगी मजबूत

पटना:  बिहार में मातृ स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई चुनौतियां हैं, जिनमें से एक प्रमुख चुनौती है हाई रिस्क प्रेगनेंसी (उच्च जोखिम गर्भावस्था)। यह न केवल मां के जीवन के लिए खतरा बनता है, बल्कि नवजात शिशु के स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव डालता है। मातृ मृत्यु अनुपात और नवजात शिशु मृत्यु दर का एक बड़ा हिस्सा इन हाई रिस्क प्रेगनेंसी के कारण होता है। प्रतिवर्ष औसतन 2.5 लाख महिलाएं करती हैं गर्भधारण जिनमें लगभग 20% महिलाओं पर हाई रिस्क प्रेगनेंसी का खतरा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, बिहार में ........

पटना : हाई रिस्क प्रेगनेंसी में कमी से सुरक्षित मातृत्व की बुनियाद होगी मजबूत
Google

-राज्य में प्रति वर्ष औसतन 50 हजार गर्भवतियां रहतीं हैं उच्च जोखिम के दायरे में 
-इसके प्रबंधन में जननी सुरक्षा योजना व प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व योजना कारगर

पटना:  बिहार में मातृ स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई चुनौतियां हैं, जिनमें से एक प्रमुख चुनौती है हाई रिस्क प्रेगनेंसी (उच्च जोखिम गर्भावस्था)। यह न केवल मां के जीवन के लिए खतरा बनता है, बल्कि नवजात शिशु के स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव डालता है। मातृ मृत्यु अनुपात और नवजात शिशु मृत्यु दर का एक बड़ा हिस्सा इन हाई रिस्क प्रेगनेंसी के कारण होता है।
प्रतिवर्ष औसतन 2.5 लाख महिलाएं करती हैं गर्भधारण जिनमें लगभग 20% महिलाओं पर हाई रिस्क प्रेगनेंसी का खतरा
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, बिहार में 15-49 आयु वर्ग की गर्भवती महिलाओं में से लगभग 17% महिलाएं हाई रिस्क प्रेगनेंसी का सामना करती हैं। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में हर साल लगभग 2.5 लाख महिलाएं गर्भधारण करती हैं, जिनमें से लगभग 20% महिलाएं हाई रिस्क प्रेगनेंसी का सामना करती हैं। यह आंकड़ा बताता है कि राज्य में लगभग 50,000 महिलाएं हर साल गर्भावस्था के दौरान उच्च जोखिम में रहती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार से हाई रिस्क प्रेगनेंसी के मामलों में कमी लाई जा सकती है।
नियमित जांच व देखभाल जरूरी:
पटना एम्स में एडिशनल प्रोफेसर व स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ इंदिरा प्रसाद कहती हैं, "हाई रिस्क प्रेगनेंसी के मामलों में नियमित जांच और देखभाल अत्यंत आवश्यक है। यह गर्भावस्था के दौरान होने वाली जटिलताओं को समय रहते पहचानने और उनका समाधान करने में मदद करती है। विशेषकर, ग्रामीण क्षेत्रों में यह जागरूकता बढ़ाने की ज़रूरत है कि महिलाओं को गर्भावस्था के शुरुआती चरणों में ही पंजीकरण कराना चाहिए और नियमित जांच करवानी चाहिए।"
जहानाबाद जिले की रहने वाली शिप्रा जिन्होंने हाल ही में एक हाई रिस्क प्रेगनेंसी के बाद स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया है, बताती हैं, "मेरी गर्भावस्था के दौरान कई जटिलताएँ आईं, लेकिन डॉक्टरों और आशा कार्यकर्ता की मदद से मुझे सही समय पर इलाज मिला। नियमित जांच और सही समय पर दी गई सलाह ने मेरे और मेरे बच्चे के जीवन को सुरक्षित रखा। मैं सभी गर्भवती महिलाओं से आग्रह करती हूँ कि वे अपने गर्भ की नियमित जांच कराएं।"
सरकार की पहल:
सरकार ने हाई रिस्क प्रेगनेंसी के मामलों को कम करने के लिए विभिन्न योजनाओं को लागू किया है, जिनमें जननी सुरक्षा योजना और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना प्रमुख हैं। इन योजनाओं के अंतर्गत, गर्भवती महिलाओं को वित्तीय सहायता और नियमित स्वास्थ्य जांच की सुविधा प्रदान की जाती है। हाई रिस्क प्रेगनेंसी को कम करने के लिए सभी स्तरों पर गम्भीर प्रयास की आवश्यकता है, जिसमें सरकार, स्वास्थ्य कर्मी, और समुदाय का सहयोग अहम है। गर्भवती महिलाओं को समय पर और उचित चिकित्सा सहायता मिल सके, इसके लिए जागरूकता और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाने की जरूरत है।