सीतामढ़ी :-- भाई-बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक सामा चकेवा की शुरूआता

सागर कुमार, चम्पारण टुडे (सीतामढ़ी ब्यूरो) सीतामढ़ी(परिहार) :- समा खेले गइलो माई हे चकबा भइया के र टोल, समुआ हेराई गेल हो भैया, चंगेरिया लेइगेल चोर। जैसे परंपरागत गीतों से शाम ढलते ही गलियां गुलजार हो उठती है। लोक आस्था का महापर्व छठ के खरना की रात से ही भाई-बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक सामा चकेवा शुरू हो....

Nov 11, 2024 - 02:26
Nov 11, 2024 - 22:41
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सीतामढ़ी :-- भाई-बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक सामा चकेवा की शुरूआता

-- शाम होते ही शुरू हो जाती है सामा चकेवा

-- भाईयों की दिर्घायु की कामना करती है बहन

-- कार्तिक पूर्णिमा के दिन होगा समापन

सागर कुमार, चम्पारण टुडे (सीतामढ़ी ब्यूरो)

सीतामढ़ी(परिहार) :- समा खेले गइलो माई हे चकबा भइया के र टोल, समुआ हेराई गेल हो भैया, चंगेरिया लेइगेल चोर। जैसे परंपरागत गीतों से शाम ढलते ही गलियां गुलजार हो उठती है। लोक आस्था का महापर्व छठ के खरना की रात से ही भाई-बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक सामा चकेवा शुरू हो गया। जिले के परिहार प्रखंड के डिमाही गांव में बहनें सामा चकेवा खेलती नजर आई।

कातिक पूणिमा के दिन इसका समापन होता है। बहनें अपने भाईयों को नए धान के चूड़ा के साथ दही खिलाकर समापन करती हैं। बहनें भाई के दीर्घायु होने की कामना करती है। यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। बहनें सामा-चकेवा, सत्यभइया, खड़रीच, चुगिला, वृद्धावन आदि की प्रतिमा बनाती है। गीत के बाद बनावटी वृद्धावन में आग लगाती। चुगला संठी से निर्मित को गालियां देते हुए उसकी दाढ़ी में आग लगाती हैं। काति क पूणिॅमा के दिन बेटी की विदाई जैसी डोली सजा कर सामा चकेवा का विसर्जन किया जाता है।शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की पुत्री श्यामा ऋषि कुमार चारूदत्त से ब्याही गई थी। श्यामा ऋषि मुनियों की सेवा करने बराबर उनके आश्रमों में जाया करती थी। भगवान श्रीकृष्ण के मंत्री चूरक को यह रास नहीं आया। श्यामा के खिलाफ साजिश रची। कुछ ऐसी शिकायत की जिससे क्रोधित होकर भगवान श्रीकृष्ण ने श्यामा को पक्षी बन जाने का श्राप दिया। श्यामा के पति चारूदत्त ने भगवान महादेव की पूजा करके प्रसन्न कर लिया और स्वयं भी पक्षी का रूप धारण कर लिया। श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्भ ने अपने बहन - बहनोई की दशा देखकर पिता की आराधना आरंभ की। मानव रूप में पाने का वरदान मांगा।और चारूदत्त रूपी चकेवा की मूर्ति बनाकर उनके गीत गाए और चुरक की कारगुजारी को उजागर करें तो दोनों फिर से अपने रूप में आ जाएंगे। उसके बाद से यह त्योहार मनाया जाता है। बहन श्यामा ने वृंदावन में घर-घर जाकर महिलाओं से आग्रह किया कि जो बहनें मिट्टी से सामा चकेवा बनाकर चौक-चौराहों व खलियान पर खरना की रात से कातिॅक पूणिॅमा तक खेलेंगी उनके भाई की लंबी आयु होगी। उसी दिन से बहनों व माताओं ने सामा चकेवा का खेल आरंभ किया।

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